सोमवार, 12 दिसंबर 2016

एहसास पहले प्‍यार का

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का ।
वह हंस के मिलना और फिर रूठ जाना ,
अन्‍दाज मेरे मनुहार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।

नजरें मिलाना फिर शरमा जाना ,
तेरे हृदय में धीरे-धीरे खिलना मेरे प्‍यार का ।
पहले हां ,फिर ना-ना , फिर हां - हां ,
वह हसीन शाम इकरार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।

राहें तकना  तारे गिनना ,
वह पल छिन इन्‍तजार का ।
दबे पांव आकर चुपके से ,
अधरों पर झुकना मेरे यार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।

वह कसमें वह वादे तेरे ,
रचना एक संसार का ।
मेरे और तुम्‍हारे बीच प्रिये,
गिरना हर दीवार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।

वह तेरी वादा खिलाफी ,
टूटना हृदय के तार का ।
कतरा कतरा रिसते रिसते ,
चुकना तेरे प्‍यार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।


शनिवार, 18 जून 2016

ऐसा हो समाज का नेता

#ऐसा_हो_समाज_का_नेता

पेट में जिसके दाँत नहीं हो , 
उल्‍टी-सीधी कोई बात नहीं हो,
 सच्चा और सरल हो,
 ना हो कोई अभिनेता, 
ऐसा हो समाज का नेता।

सबका मान- सम्मान करे, 
नहीं किसी का अपमान करे, 
ईमानदारी की बूटी खाकर ,
बने सभी का चहेता,
ऐसा हो समाज का नेता।

लक्ष्य एक उत्थान समाज का,
अनुभव लेवे राज काज का,
दृढ़ प्रतिज्ञ हो लक्ष्य के प्रति,
मजलूमों के दुःख हर लेता,
ऐसा हो समाज का नेता।
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शुक्रवार, 3 जून 2016

कवितायें मुझको रचती हैं ।

मैं कवितायें रचता हूं
या कवितायें मुझको रचती हैं ।

ढूंढता हूं शब्‍द कुछ,
लय,सुर और ताल।
मनपाखी उड़ता जाता है
टेढ़ी,मेढ़ी, तिरछी चाल।
बैठेे जाकर उसी डाल पर
जहां पर मैना रहती है।
मैं कवितायें रचता हूं
या कवितायें मुझको रचती हैं ।

स्‍मृतियों से निकलकर मैना
कुछ बातें पुरानी कहती है,
उन रूहानी सम्‍बन्‍धों की
अकथ कहानी कहती है।
मैं कवि बस नाम का
मेरे काव्य वही  कहती है।
मैं कवितायें रचता हूं
या कवितायें मुझको रचती हैं । 

बुधवार, 1 जून 2016

आ जाओ !

मैं सीप तुम बूँद स्वाति की ,मैं दीपक तुम बाती
आ जाओ मेरे सिक्त जीवन में जैसे नदिया बलखाती ॥
तुम्हे चाहूंगा और रखूँगा हरदम दिल के पास ।
नाम तुम्हारा रटती रहेगी आती जाती साँस ।
तुम नयनों के आगे रहती हरदम ही मुस्काती ।
मैं सीप तुम बूँद स्वाति की , मैं दीपक तुम बाती ॥
रंग भरेगी जीवन में तुम्हारी मधुर मुस्कान ।
ओ प्राणेश्वरी दे दो मुझे ये प्रेम - दान ॥
मेरे प्रेम की मधुर चाँदनी में तुम ले अंगडाई नहाती ।
मैं सीप तुम बूँद स्वाति की मैं दीपक तुम बाती ॥
आ जाओ मेरे सिक्त जीवन में जैसे नदिया बलखाती॥

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

कविता

जब बंध जाए नैनों से नैनों की डोर ,
नृत्यावृत होने लगे मन का मोर ,
बहने लगे जब भावों की सरिता ।
तब प्रेमागर्भ से जन्म लेती है कविता ।
दूर हो जाए हृदय का अमावस ,
छा जाए सर्वत्र करुण रस ,
जन्मे पुरूष हृदय में भी वनिता ।
तब प्रेमागर्भ से जन्म लेती है कविता ।।