शुक्रवार, 3 जून 2016

कवितायें मुझको रचती हैं ।

मैं कवितायें रचता हूं
या कवितायें मुझको रचती हैं ।

ढूंढता हूं शब्‍द कुछ,
लय,सुर और ताल।
मनपाखी उड़ता जाता है
टेढ़ी,मेढ़ी, तिरछी चाल।
बैठेे जाकर उसी डाल पर
जहां पर मैना रहती है।
मैं कवितायें रचता हूं
या कवितायें मुझको रचती हैं ।

स्‍मृतियों से निकलकर मैना
कुछ बातें पुरानी कहती है,
उन रूहानी सम्‍बन्‍धों की
अकथ कहानी कहती है।
मैं कवि बस नाम का
मेरे काव्य वही  कहती है।
मैं कवितायें रचता हूं
या कवितायें मुझको रचती हैं । 

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