मंगलवार, 17 अक्टूबर 2017

रंग डाला

नहीं     मिला     मधुमास     मुझे ,      मधु      का     प्याला
कुछ तन पे गिरा कुछ पान किया मैंने जीवन मधु में रंग डाला

चूर   हुए सारे  स्वपन सलोने
कल्पनाओं का महल ढह गया।
तेरी मूरत समक्ष नैन भर आये
अश्रुओं में प्रेमनगर बह गया।

तू न रही कुछ भी न रहा , रही शेष  बस यह हाला।
                             मैंने जीवन मधु में रंग डाला।

तुम बिना सूना जीवन चित्र
निरीह तूलिका में रंग न रहा
जल गया    चित्रपट सजीला
ऐसे   जलाती     है    विरहा


मद पी  मदमस्त   हुए   गले   में पड़ी विरह की माला।
                                  मैंने जीवन मधु में रंग डाला।

मिट    गई तू हृदयपट से
यहाँ न रहा   कुछ भी अब।
मधु     ही  है अब तो मेरा
ईश्वर    अल्लाह       रब ।

मधु पी    मधुप्रिया   के   गले   में   डाली   वरमाला।
                               मैंने जीवन मधु में रंग डाला।

हरपल  मैं   तेरे   पास था
तुझमे  बसते थे प्रान  मेरे।
देखा  तुझमे     तीरथ सारे
कहा तुझे   भगवान   मेरे।

पर अब तो मेरा मंदिर मस्जिद काबा है सखि मधुशाला।
                                    मैंने जीवन मधु में रंग डाला।

मुझे छोड़ा औरों के लिये
निकली    तू      हरजाई।
ऐ     अकिंचन    देख तू
कैसे मधु ने प्रीति निभाई।

मैं,तू  हुआ , तू मैं न हुई , पर मधु ने मुझको पी डाला।
                                 मैंने जीवन मधु में रंग डाला।

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

एहसास पहले प्‍यार का

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का ।
वह हंस के मिलना और फिर रूठ जाना ,
अन्‍दाज मेरे मनुहार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।

नजरें मिलाना फिर शरमा जाना ,
तेरे हृदय में धीरे-धीरे खिलना मेरे प्‍यार का ।
पहले हां ,फिर ना-ना , फिर हां - हां ,
वह हसीन शाम इकरार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।

राहें तकना  तारे गिनना ,
वह पल छिन इन्‍तजार का ।
दबे पांव आकर चुपके से ,
अधरों पर झुकना मेरे यार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।

वह कसमें वह वादे तेरे ,
रचना एक संसार का ।
मेरे और तुम्‍हारे बीच प्रिये,
गिरना हर दीवार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।

वह तेरी वादा खिलाफी ,
टूटना हृदय के तार का ।
कतरा कतरा रिसते रिसते ,
चुकना तेरे प्‍यार का ।

क्‍या भूल सकता है कोई
एहसास वह पहले प्‍यार का।


शनिवार, 18 जून 2016

ऐसा हो समाज का नेता

#ऐसा_हो_समाज_का_नेता

पेट में जिसके दाँत नहीं हो , 
उल्‍टी-सीधी कोई बात नहीं हो,
 सच्चा और सरल हो,
 ना हो कोई अभिनेता, 
ऐसा हो समाज का नेता।

सबका मान- सम्मान करे, 
नहीं किसी का अपमान करे, 
ईमानदारी की बूटी खाकर ,
बने सभी का चहेता,
ऐसा हो समाज का नेता।

लक्ष्य एक उत्थान समाज का,
अनुभव लेवे राज काज का,
दृढ़ प्रतिज्ञ हो लक्ष्य के प्रति,
मजलूमों के दुःख हर लेता,
ऐसा हो समाज का नेता।
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शुक्रवार, 3 जून 2016

कवितायें मुझको रचती हैं ।

मैं कवितायें रचता हूं
या कवितायें मुझको रचती हैं ।

ढूंढता हूं शब्‍द कुछ,
लय,सुर और ताल।
मनपाखी उड़ता जाता है
टेढ़ी,मेढ़ी, तिरछी चाल।
बैठेे जाकर उसी डाल पर
जहां पर मैना रहती है।
मैं कवितायें रचता हूं
या कवितायें मुझको रचती हैं ।

स्‍मृतियों से निकलकर मैना
कुछ बातें पुरानी कहती है,
उन रूहानी सम्‍बन्‍धों की
अकथ कहानी कहती है।
मैं कवि बस नाम का
मेरे काव्य वही  कहती है।
मैं कवितायें रचता हूं
या कवितायें मुझको रचती हैं । 

बुधवार, 1 जून 2016

आ जाओ !

मैं सीप तुम बूँद स्वाति की ,मैं दीपक तुम बाती
आ जाओ मेरे सिक्त जीवन में जैसे नदिया बलखाती ॥
तुम्हे चाहूंगा और रखूँगा हरदम दिल के पास ।
नाम तुम्हारा रटती रहेगी आती जाती साँस ।
तुम नयनों के आगे रहती हरदम ही मुस्काती ।
मैं सीप तुम बूँद स्वाति की , मैं दीपक तुम बाती ॥
रंग भरेगी जीवन में तुम्हारी मधुर मुस्कान ।
ओ प्राणेश्वरी दे दो मुझे ये प्रेम - दान ॥
मेरे प्रेम की मधुर चाँदनी में तुम ले अंगडाई नहाती ।
मैं सीप तुम बूँद स्वाति की मैं दीपक तुम बाती ॥
आ जाओ मेरे सिक्त जीवन में जैसे नदिया बलखाती॥

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

कविता

जब बंध जाए नैनों से नैनों की डोर ,
नृत्यावृत होने लगे मन का मोर ,
बहने लगे जब भावों की सरिता ।
तब प्रेमागर्भ से जन्म लेती है कविता ।
दूर हो जाए हृदय का अमावस ,
छा जाए सर्वत्र करुण रस ,
जन्मे पुरूष हृदय में भी वनिता ।
तब प्रेमागर्भ से जन्म लेती है कविता ।।

रविवार, 21 जून 2015

तेरे लिए !

मेरे नयनों में सपनों का महल तेरे लिए है,
प्रेम का यह खिलता हुआ कमल तेरे लिए है ,
हृदय में जन्मे हैं कुछ भावः कोमल से,
मेरा हर शब्द , गीत व गजल तेरे लिए है।

हृदयवाटिका का प्रेम पाटल तेरे लिए है,
मन का ये रक्तिम पुष्प दल तेरे लिए है,
हृदय को हर घडी तेरे दर्शन की आस रहती है,
मन में कुछ ऐसा ही उद्वेग आजकल तेरे लिए है।

मुख पर ये अवसाद का बादल तेरे लिए है,
मन आज अधिकाधिक चंचल तेरे लिए है,
बिन तेरे जीवन की कल्पना अब व्यर्थ है,

मूढ़ हृदय मेरा सनम ,पागल तेरे लिए है।