रविवार, 7 सितंबर 2014

मेरा हृदय कमल मुस्काया

चन्द्र सी मुख छवि तेरी मदभरी कंचन काया ।
इस यौवन सरिता में मैं प्यास बुझाने आया॥
अधरों को अधरों पर रखूँ बाहुपाश में नवनीत वदन,
जलूं और जलाऊं , यौवन जल से बुझाऊं अगन ।
चंचलता ने पवन हाय मुझे बहकाया ।
इस यौवन सरिता में मैं प्यास बुझाने आया ॥
तुम मुझको और मैं तुमको दूँ नख क्षत ।
केश तुम्हारे बिखर रहे वस्त्र हो रहे क्षत-विक्षत ।
हे सुमुखी आज मेरा ह्रदय कमल मुस्काया ।
इस यौवन सरिता में मैं मैं प्यास बुझाने आया ॥